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मेरी अधूरी ख्वाइशें

अधूरी हैं ख्वाइशें मेरी,अधूरा हूँ हर पल मैं, मिल जाए वो सब,तो मुकम्मल हो जाएं, मेरी ख्वाइशों के,"भारत" की दिशाएं, चाह नहीं थी कभी,दुनिया जीतने की, मग़र फिर भी,जीतना हैं ये जहाँन, जीती हैं दुनिया तो,बहुतों ने आज तक, मग़र मैं चाहता हूँ,अरबों दिलों पर फ़तह, जातिवाद की बेड़ियों में,जकड़ा हैं "भारत", पारिवारिक बन्दिशों में,जकड़ा था मैं, तोड़ कर बन्दिशों को,निकल पड़ा हूँ, मैं तो अपने देश की माटी का,एक घड़ा हूँ, निकला हूँ करने,सारे जगत को शीतल, बेशक सदैव तपता रहूँ,कड़ी धूप में मैं, जाति पाती माने सब,पढ़ें लिखों के शहरों में, झोंकनी हैं समझदारी,रगों में बहती नहरों में, माना कि मुश्किल हैं बहुत,देश से इसको मिटाना, ठाना हैं ख़ुद मिटकर भी,हैं देश सें इसको हटाना, ✍:/-दिगम्बर रमेश हिन्दुस्तानी🇮🇳