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जातिवादी ज़हर

हालात कुछ ऐसे हैं इन सर्द हवाओं में, मेरा देश ठिठुर रहा है इन बहती फ़िज़ाओं में, काश पिघल जाएं ये जातिवाद के पर्वत, मेरा देश मर रहा हैं इन नफरती बर्फ़ीली आहों में, ये जातिवादी ज़हर ना जाने किसने घोला हैं, मेरें देश की रगों की नदियों में बहती धाराओं में, जम गया हैं ये जहर रक्त की उन नलियों में, मिल नहीं रहा कोई वैध इस देश की गलियों में, नेता भी अपने स्वार्थ में लीन हैं, मेरें देश "भारत" की बजा रहें बीन हैं, मानवता और राष्ट्रवाद ही इसका ईलाज हैं, अन्यथा बीमारी ये लग रही ला-ईलाज हैं, देश में शिक्षा की प्रचुर मात्रा में कमी हैं, क्योंकि हवाओ में भी जाति धर्मों की नमी हैं, उच्च कोटि की शिक्षा का प्रचार प्रसार कराना हैं, क्योंकि हमें देश सें जातिवाद का नामोनिशान मिटाना हैं