क़ौमी एकता साधना
कभी तू आरती बन जाना मेरी, और हम भी तेरी अज़ान बन जाएँ। ग़र बात ग्रँथ की आये कहीं, तो तुम गीता पढ़ लेना मेरी, और हम भी तेरी क़ुरान पढ़ जाएँ। दिवाली में हिन्दू बन जाना तुम, ईद में हम मुसलमान बन जाएँ। बात पूजा की आये कहीं, तो मैं रहीम से करूँगा फ़रियाद, तेरी दुआ में भी मेरा राम आएँ। बात कौम कि कहीं आये, तो स्वामी विवेकानंद बन जाना तुम, हम भी डॉ कलाम बन जाएँ। चल छोड़कर बैर मजहबी, हम काम कुछ ऐसे करें, कि दुनिया में पहचान बन जाएँ। बात इंसानियत की आये कहीं, तो दोनों मज़हब छोड़ इंसान बन जाएँ। बात गर माटी की आये कहीं, तो चल मिलकर भारत महान बन जाएँ। -✍️दिगम्बर रमेश हिंदुस्तानी🇮🇳