जा रहें है वो
मेरी सदाक़त को ऐसे, झुठलाते जा रहे हैं वो, जैसे कि पानी में आग, लगाते जा रहें हैं वो। चलो इश्क़ मोहब्बत को दरकिनार कर दिया मैंने, मग़र जाने क्यों ? हक़ीक़त छुपाते जा रहे हैं वो। ये मेरी मोहब्बत तो, अंकुरित बीज है इश्क़ का, अनजाने में जिसे, मिट्टी में दबाते जा रहे हैं वो। देखना ! मैं छाऊँगा उनपर, एक दिन बादल बनकर, जिन घटाओं को आज, हटातें जा रहे हैं वो। वो कहानियां, वो क़िस्से भी, मुक़म्मल होंगे एक दिन, जो आज अधूरे ही लोगों को, सुनाते जा रहे हैं वो। वो दिल तो मैं कबका, उनके नाम कर चुका हूँ, जिसे मेरा दिल समझकर, दुःखाते जा रहे हैं वो। लगता है बेशुमार, नफ़रती दौलत हैं उनके पास, जो भर भरकर झोली मुझपऱ, लुटाते जा रहे हैं वो। मेरे दिल पर लिखा उनका नाम, पत्थर की लकीर है, जिसे मिटाने की नाक़ाम कोशिशे, आज़माते जा रहे हैं वो। अपने दिये ज़ख्मों को, उन्होंने देखा नहीं अभी तक ! शायद इसीलिए अब तक, मुसकुराते जा रहें हैं वो। मैं पहले ही क्या कम दीवाना था, उनका ? जो और अपना दीवाना, मुझकों बनाते जा रहे हैं वो। ✍️लेखक:- दिगम्बर रमेश हिन्दुस्तानी🇮🇳