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मोहब्बत मे चित्रण

उसने मेरा चित्रण मोहब्बत में बिल्कुल खुँखार बना रक्खा है।  जिस जिससे मुझको नफरत है उसने उन सब बातों को अपना यार बना रक्खा है।  ख़ुद ही देकर मुझको धोख़ा, धोखेबाज मुझी को साबित करने पर तुले है वो।  उसने ख़ुद को इतने अव्वल दर्जे का एक बेहतरीन कलाकार बना रक्खा है।  पहले इश्क़ जताना, फिर मोहब्बत मे आशिकों के दिल से खेलना।  लगता हैं हुस्न की परियों ने,आजकल इसी को अपना कारोबार बना रक्खा है।  एक झूठी दिखावे भरी शानोशौकत की दुनिया में उलझ कर बैठे है वो।  ना जाने किसके बहकावे मे, उसी दुनिया को उसने अपना संसार बना रक्खा है।  -दिगंबर रमेश हिंदुस्तानी 🇮🇳

मुस्कुराने की सजा

सजा मिली है मुझको ज्यादा हद से मुस्कुराने की, बड़ी ही गंदी नजर लगी है, कमबख्त इस जमाने की। बेवफाई करने वाले हर एक शख्स को उसका यार मुबारक, मगर ध्यान रखना लगेगी हाय सबको इस दीवाने की। यहां दिल तोड़ने में डिग्रियां कर रखी है सबने, मगर मिलेगी बद्दुआ सबको किसी का दिल दुखाने की। इस बेशर्म दुनिया में तो तुम सर उठाकर जी ही लोगे, मगर खुदा के सामने मिलेगी नहीं तुम्हें जगह, मुंह छुपाने की। इस मोहब्बत का दूसरा नाम धोखा ही ना रख दो, फिर किसी की हिम्मत तो ना होगी, किसी से दिल लगाने की। - दिगम्बर रमेश हिंदुस्तानी  🇮🇳

दीवाने की दीवानगी

उसके दिल की गली में अब मेरा आशियाना नहीं,  हां दोस्त, मैं बेघर हूं, मेरा कोई ठिकाना नहीं। कभी जो कहता था सबसे, है एक पागल दीवाना मेरा, अब कहता फिरता है वो सबसे, मेरा कोई दीवाना नहीं। कभी जो कहता था की, अपने दिल को छुपा कर रखो सबसे, अब वो कहता है कि अपने दिल की बात भी किसी को बताना नहीं। लगाए थे उसने हर बार मेरे दिल पर निशाने इतने गहरे, कि अब वो कहता है अपने जख्मों को किसी को दिखाना नहीं। कभी जो कहता था के मुस्कुराते हुए अच्छे लगते हो तुम, वही कहता है नयनों से अश्क छलकाओगे तुम, खुदा के वास्ते यहां तो मुस्कुराना नहीं। तुम लौट आओ कि करेंगे, अबकी मोहब्बत बेशुमार इतनी, है इंतज़ार कबसे तुम्हारा, के अब तुम करना कोई बहाना नहीं। दीवाने तो तुमने दुनिया में देखे होंगे बहुत से जांना, मेरी दीवानगी देखोगे तो कहोगे कि तुम सा देखा मैंने कोई दीवाना नहीं। और किसी को सताने की, मस्करी करने की एक हद होती है, मैं हो जाऊंगा पागल कि अब तुम मुझको इससे ज्यादा और सताना नहीं। कुछ बातें मोहब्बत की दिल टूटने के बाद ऐसी होती हैं के बनाते हैं सब मजाक,  इसीलिए कहते हैं कुछ लोग वो बातें किसी को बताना नहीं। - दिगम्बर रम

दिल से हिंदुस्तानी

उम्र कोई मसला नहीं रगो में जवानी और खून में रवानी चाहिए, भगत सिंह की परछाई जैसा होने के लिए भी दोस्तों, पहले दिल में देशभक्ति आनी चाहिए। मातृभूमि की रक्षा के लिए वो सूली जवानी में चढ़े,  आज़ादी का दौर है दोस्तों अब तो गद्दारो की छाती देशभक्तो की आहट से भी कांप जानी चाहिए।   अब इंक़लाब आता नहीं बस चीखने चिल्लाने से, हर इंक़लाब को आज सबसे ज्यादा बुद्धिमानी चाहिए।  आओ मिलकर बनाये दोस्तों अपने शहीदों की उम्मीदों का भारत,  जिसे देखकर भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु के संग हर एक बलिदानी की शाहदत जन्नत में भी मुस्कुरानी चाहिए। मिलकर रहो दोस्तों, जाति, धर्म का दामन पीछे छोड़कर, हमको तो भारत के हर कण में बसने वाला हर कोई शख़्स बस दिल से हिंदुस्तानी चाहिए। ~ दिगम्बर रमेश हिंदुस्तानी 🇮🇳

इंसाफ की लड़ाई

इंसाफ की लड़ाई अक्सर बगावत मांगती है, चीज पुरानी हो तो क्या, हर चीज हिफाजत मांगती है। लड़ने वाला तो बस जीत का तलबगार होता है, आजकल तो हक की लड़ाई भी, एक जमानत मांगती है। सौंपती आई है जो जनता, अपनी तिजोरी की चाबियां तुमको, आज मालिक के हक से, वो अपनी अमानत मांगती है। किसको मतलब है देश से,  और कौन मतलबी है ! अब भी ये जनता भोली, बिल्कुल नहीं पहचानती  है। बोलकर मीठा सामने, जो हमारी पीठ में खंजर उतारते हैं, ऐसे लोगों को भी ये आवाम अपना मानती हैं। करके भरोसा हर एक पर अब तलक सिर्फ धोखा‌ ही खाया है, मगर आजकाल मेरी नजरें, हर एक की नियत पहचानती है। ~दिगंबर रमेश हिंदुस्तानी🇮🇳

जा रहें है वो

मेरी सदाक़त को ऐसे, झुठलाते जा रहे हैं वो, जैसे कि पानी में आग, लगाते जा रहें हैं वो। चलो इश्क़ मोहब्बत को दरकिनार कर दिया मैंने, मग़र जाने क्यों ? हक़ीक़त छुपाते जा रहे हैं वो। ये मेरी मोहब्बत तो, अंकुरित बीज है इश्क़ का, अनजाने में जिसे, मिट्टी में दबाते जा रहे हैं वो। देखना ! मैं छाऊँगा उनपर, एक दिन बादल बनकर, जिन घटाओं को आज, हटातें जा रहे हैं वो। वो कहानियां, वो क़िस्से भी, मुक़म्मल होंगे एक दिन, जो आज अधूरे ही लोगों को, सुनाते जा रहे हैं वो। वो दिल तो मैं कबका, उनके नाम कर चुका हूँ, जिसे मेरा दिल समझकर, दुःखाते जा रहे हैं वो। लगता है बेशुमार, नफ़रती दौलत हैं उनके पास, जो भर भरकर झोली मुझपऱ, लुटाते जा रहे हैं वो। मेरे दिल पर लिखा उनका नाम, पत्थर की लकीर है, जिसे मिटाने की नाक़ाम कोशिशे, आज़माते जा रहे हैं वो। अपने दिये ज़ख्मों को, उन्होंने देखा नहीं अभी तक ! शायद इसीलिए अब तक, मुसकुराते जा रहें हैं वो। मैं पहले ही क्या कम दीवाना था, उनका ? जो और अपना दीवाना, मुझकों बनाते जा रहे हैं वो। ✍️लेखक:- दिगम्बर रमेश हिन्दुस्तानी🇮🇳

देखकर

उसकी दिलकश आँखों को, इतना वीरान देखकर, मैं मात खा गया इश्क़ में, इंसान देखकर। कोशिश बहुत अच्छी थीं, मुक़म्मल ना सही, मैं क़ायल हो गया उसका, अपने क़त्ल का इंतजाम देखकर। मैं सौ-सौ बार, ख़ुद से ख़ुदकुशी कर लूँ, उसके इठलाते लबों पे, ऐसी मुस्कान देखकर। अब तो लगता हैं मुझकों, मैं हैरानी ने ना मर जाऊँ, कहीं आजकल ख़ुद में उसको ऐसे, हैरान देखकर। वो रोज़ाना दिल दुःखाते हैं मेरा, मग़र फ़िर भी ! मेरी आँखे चमक उठती हैं, फ़क़त उसका नाम देखकर। उसकी याद बहुत सताती हैं, दिन ढ़लते ही रोज़ाना, अंधेरी रातों में, वो तन्हा-सा चाँद देखकर। तरस नहीं आता उसको, बिल्कुल भी मुझपऱ, यूँ मेरी मोहब्बत को ग़मों से, लहूलुहान देखकर। ये ज़माना अब मुझकों, मुर्दा समझने लगा हैं, यूँ सारी दुनिया से मुझकों, अंजान देखकर। जब मोहब्बत की मैंने, तो ना-वाकिफ़ था मंसूबो से उसके, मग़र आजकल दहशत में हूँ, इश्क़ का ऐसा अंजाम देखकर। अब भरोसा नहीं होता, रब के अस्तित्व पर भी मुझकों, किसी भी मंदिर, मस्जिद, चर्च में भगवान देखकर। ✍️लेखक :- दिगम्बर रमेश हिंदुस्तानी🇮🇳