हम भी देखेंगे
एक ज़िंदगी की खातिर, मौत के क़रीब जाकर हम भी देखेंगे। ये हसीन मौत का मंजर कैसा होगा ? तुझें पाकर हम भी देखेंगे। बेशक़ शोले भड़के मगर घड़ी भर को, नज़दीक तेरे आकर हम भी देखेंगे। तुम दिल पर छुरिया चलाकर करोगे क़त्ल, मग़र मुस्कुराकर हम भी देखेंगे। जहाँ होते हैं सिर क़लम सरे आम, वहाँ सिर अपना झुकाकर हम भी देखेंगे। जहाँ हार जाते हैं सभी उस्ताद, उस जंग में फ़तह पाकर हम भी देखेंगे। आकर हम महफ़िल में तेरी, किस्मत अपनी आज़मा कर हम भी देखेंगे।। लेखक :- दिगम्बर रमेश हिंदुस्तानी🇮🇳