Posts

Showing posts from October, 2018

हम भी देखेंगे

एक ज़िंदगी की खातिर, मौत के क़रीब जाकर हम भी देखेंगे। ये हसीन मौत का मंजर कैसा होगा ? तुझें पाकर हम भी देखेंगे। बेशक़ शोले भड़के मगर घड़ी भर को, नज़दीक तेरे आकर हम भी देखेंगे। तुम दिल पर छुरिया चलाकर करोगे क़त्ल, मग़र मुस्कुराकर हम भी देखेंगे। जहाँ होते हैं सिर क़लम सरे आम, वहाँ सिर अपना झुकाकर हम भी देखेंगे। जहाँ हार जाते हैं सभी उस्ताद, उस जंग में फ़तह पाकर हम भी देखेंगे। आकर हम महफ़िल में तेरी, किस्मत अपनी आज़मा कर हम भी देखेंगे।। लेखक :- दिगम्बर रमेश हिंदुस्तानी🇮🇳

तुझसे महरूमी

ये मेरें अश्क़ तुझसे महरूमी की, एक लम्बी..गाथा गाते हैं, यहाँ शब गुज़रती है रोज़ाना, कुछ यूँ जागते जागते हमारी, देखकर ये गम मेरा अक़्सर, यहाँ तारे भी टूट जाते है, जब बादल देखकर ये तस्व्वुर हमारा, ख़ुद को रोक नही पाता, तब बादल भी मेरी भावनाओं संग, अपने अश्क़ बहाते है, हम तो लुटे हुए आशिक़ है ज़नाब, ख़ुद को कहा आबाद पाते है, बिछड़कर भी महबूब से अपने, कहा ख़ुद को हम तन्हा पाते है, खफ़ा है आज बेशक़ वो हमसे, मग़र फ़िर भी हमें वो बहुत सताते है, सँजोये थे जो सपने अपनी आंखों में, वो हमें रात रात भर जगाते है, वो भूल जाएं हमें बेशक़, समझकर कोई पागल दीवाना, मगर हमें वो बेशकीमती तोहफ़े से, बहुत ही याद आते हैं... लेखक :- दिगम्बर रमेश हिन्दुस्तानी🇮🇳