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Showing posts from November, 2018

बाक़ी हैं...

ज़रा मेरें इन हौसलों को देखों, अभी इनमें में एक ऊँची... उड़ान बाक़ी है। ये मेरें ख़्वाब, जो इतने...बड़े हैं, क्योंकि दिल में मेरें, एक हिंदुस्तान बाक़ी है। ये जो चोरों की फेहरिस्त, जमा हैं यहाँ देश मे, अभी इन्हें कूटने का, मेरा इंतेजाम बाक़ी है। अभी तो सिर्फ़ लफ़्ज़ों से बयां है, मेरी तक़रीर, अभी करतब से मेरा, एक तूफ़ान बाक़ी है। अभी तो निकला हूँ मैं, बांधकर सर पर क़फ़न, अभी देश को बदलने का, मेरा अंजाम बाक़ी है। अभी तो सिर्फ़, ये शुरुआत हैं मेरी, अभी जीतने को, ये सारा जहान...बाक़ी है। ये जो पड़ी हैं दिलों में, इतनी...जगह बंजर, वहाँ अभी क़ब्जे का, मेरा मकान बाक़ी है। अभी तो निकला हूँ मैं, इस पावन माटी पर, मेरें उड़ने को, ये पूरा आसमान बाक़ी है। जिस जिसने लूटा हैं, मेरें देश, मेरें घर को, अभी उन सबसे मेरा, इंतकाम...बाक़ी है। अभी अभी तो ज़िंदगी को, पढ़ना शुरू किया है मैंने, अभी इस ज़िंदगी के, बड़े बड़े इम्तेहान...बाक़ी है। ये मोदी सरकार सिर्फ़, तब तलक अस्तित्व में है, जब तक भव्य राम मंदिर निर्माण जुमला, सरे आम बाक़ी है। ये लूट देश में अब, सिर्फ़ तब तक जारी है, जितने मेरी राजनीति शुरू हो

क्रांतिवीर दिगम्बर

मैं जो करता हूँ , बदलाव की बातें, हर वक़्त, इन सियासतदानों को, मेरा ये भाव मंजूर ना है। समझते है लोग, मुझें कोई पागल दीवाना, मगर इससे ज्यादा, मेरा कोई कसूर ना हैं। है नीयत में खोट, अब व्यापार है, इनकी राजनीति, इन नेताओं का सिवा इसके, कोई दस्तूर ना हैं। बैठें हैं कई बरसों से, सबके सब लुटेरे, सत्ता में, मग़र अब और मेरें ज़िगर को, ये मंजूर ना है। बिक तो मैं भी जाता, कड़क कड़क नोट लेकर, मग़र ग़लत के साथ लहज़े में, मेरें जी हजूर ना हैं। बस बनाना हैं मुझें, मेरें सपनों का हिंदुस्तान, मेरें दिल में और दूजा कोई फितूर ना हैं। दोस्तों! एक नए भारत को बुनता, क्रांतिवीर है "दिगम्बर", किसी मुक़द्दर का मारा, कोई मजदूर ना है। -✍ दिगम्बर रमेश हिंदुस्तानी🇮🇳     

पर्यावरण बचाओ

पेड़ से, पौधे से, घास से, जिससे भी यारी रक्खो।। आज पर्यावरण, खतरे में है, यहाँ कुछ तो अपनी शुमारी रक्खो।। अपनी इच्छा से, मेहनत से, नियत से।। इसे भी, बचाने कि, जबरदस्त तैयारी रक्खो।। कल को, साँसे भी, पड़ जाएंगी कम।। इसलिए तैयारी, आज से ही जारी रक्खो।। आज ज़हर हैं यहाँ, इन हवाओं में।। तो सभी को बचाने कि, अपनी भी हकदारी रक्खो।। आप हुकुम है, सरदार है, आका है, वज़ीर-ए-आला हैं हमारे मुल्क के।। ये कायनात बचाने की, कुछ तो अपनी भी, जिम्मेदारी रक्खो।। मैं जानता हूँ, ये सरकार निकम्मी हैं, करेगी कुछ भी नही।। मग़र चुनाव नजदीक है, वोट माँगने को जुमलों कि लिस्ट जारी रक्खो।। इन विकसित देशों ने, पर्यावरण को बहुत हानि पहुँचाई हैं, ये इसकी भरपाई ज्यादा करें।। बस इतनी हमारी बात, UN कि सभाओं में, जोरदार सलीखे, हर बारी रख्खो।। अगर बस में नहीं आपके, अपने इन कर्तव्यों को निभाना।। तो आज ही इस्तीफा देकर, ये कुर्सी छोड़कर जाना, मन में जिम्मेदारी रक्खो।।    -✍ लेखक :- दिगम्बर रमेश हिंदुस्तानी🇮🇳

एकता का अकाल

देश में एकता का यहाँ पड़ा हैं अकाल, जबसे आया हैं यहाँ जाति, धर्मों का भूचाल, तरस गए हैं यहाँ हम आपसी भाईचारे को, देखा हैं दिलों में सिर्फ़ नफ़रती आँगरो को, इसलिए ही रुका हुआ हैं देश का विकास, मेरें दिल में हैं, देश को बदलने की बुलन्दी ख़ास, काश ना ये गीता औऱ ना कुरान होती, ना कहीं आरती और ना कोई अज़ान होतीं, मन्दिर और मस्जिदों के साये भी होते दूर, ना लड़ने की वजहों से हम होतें भरपूर, होता शांति का माहौल, एकता चारों ओर होती, प्यार की बरसात, हर बात में हर बार होतीं, ना कोई हिन्दू और न ही कोई मुसलमान होता, जो होता इस जहाँन में वो हर शख्स इंसान होता, आखिर क्यों भूल जाते हैं हम इंसानियत का पाठ, यहाँ कुछ सियासत के लालची लोंगो की हैं साँठ गाँठ, रखतें हैं ये सियासी, कुछ दरिंदे खरीदकर नोटों सें, क्योंकि ये सियासी तो आदि हैं सिर्फ़ वोटों के, दंगे कराना ही तो सियासी लोगों का काम हैं, आज देश का दामन भी हद से ज़्यादा बदनाम हैं, बढ़ा कर तो देखो हमारी ओर क़दम एक बार, हम भी मिलेंगें खड़े तैयार, तुम्हारे लिए हर बार, बदलना है समा देश का, बदलनी हैं देश की तक़दीर, जब थामेंगे शिक्षा