जाति और धर्म की बीमारी
धर्म और जातियों ने ये नफ़रती बीज बोया हैं, कहि कोई ग़रीब छाती पीट पीटकर रोया हैं, कभी कोई सैनिक सरहदों पर भूखें पेट सोया हैं, तो कहीं इसी जाति,धर्म ने लाल खून में भिगोया हैं, कभी कह कर "दलित" किसी को सुई सा चुभोया हैं, कभी "हिन्दू",कभी "मुस्लिम" डर के साये में सोया हैं, बेटियों की आबरू की कीमत को दोनों ने खुले में डुबोया हैं, बता कर अलग अलग ,नफरती धागा सोच में पिरोया हैं, धार्मिक नफरती शोलों ने आज तक देश को डुबोया हैं, मिलकर रहेंगे तो मिल जाएगा वो सब,जो भी आज तक खोया हैं, जैसे प्यार की चासनी में कहीं कोई रसगुल्ला डूबोया है फिर देखना मोहब्बत के त्यौहार में कहीं ईद की सेवई, तो कभी होली की गुंज्या में मावा और खोया हैं क़लमकार :/-दिगम्बर रमेश हिंदुस्तानी🇮🇳