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Showing posts from November, 2017

जाति और धर्म की बीमारी

धर्म और जातियों ने ये नफ़रती बीज बोया हैं, कहि कोई ग़रीब छाती पीट पीटकर रोया हैं, कभी कोई सैनिक सरहदों पर भूखें पेट सोया हैं, तो कहीं इसी जाति,धर्म ने लाल खून में भिगोया हैं, कभी कह कर "दलित" किसी को सुई सा चुभोया हैं, कभी "हिन्दू",कभी "मुस्लिम" डर के साये में सोया हैं, बेटियों की आबरू की कीमत को दोनों ने खुले में डुबोया हैं, बता कर अलग अलग ,नफरती धागा सोच में पिरोया हैं, धार्मिक नफरती शोलों ने आज तक देश को डुबोया हैं, मिलकर रहेंगे तो मिल जाएगा वो सब,जो भी आज तक खोया हैं, जैसे प्यार की चासनी में कहीं कोई रसगुल्ला डूबोया है फिर देखना मोहब्बत के त्यौहार में कहीं ईद की सेवई, तो कभी होली की गुंज्या में मावा और खोया हैं क़लमकार :/-दिगम्बर रमेश हिंदुस्तानी🇮🇳

दुनियां का नज़रिया

देश को बदलने की हसरतें,दिल में यूँ ना पाल, देखेंगी दुनिया तुझें तो,तुझसे करने लगेंगी सवाल, करेगा काम तू तो भलाई का दुनिया के लिए, कहेगी दुनिया करता हैं काम अपनी कमाई के लिए, अगर चाह हैं देश को बदलने की तो, अपने इरादों को ऐसे इख्तियार कर, खड़ा हो जाए ख़िलाफ़,बेशक़ सारा ज़माना, उन्हें प्यार से जीतने का इंतजाम कर, थक कर बैठना नहीं हैं तुझें,तू तो बे-लगाम घोड़ा है, बाँट जितना बाँट सकता हैं प्यार दुनिया में, क्योंकि जितना भी बाँटेगा प्यार वो सब थोड़ा हैं, बदलेंगी जरूर मेरें भी भारत देश की तस्वीर, थोड़ी कर तू कोशिश जातिवादी दलदल से देश को निकालने की थोड़ा तू सब्र कर और थोड़ा ख़ुद पर एतबार कर..........

राजनीति का ज़रिया

ज़रिया बन गया हैं कमाई का,राजनीतिक मंचों पर, ज़रिया बन गया हैं लड़ाई का धार्मिक मंचो पर, जातिवाद दिमाग़ में कम शब्दों में ज्यादा फैल रहा हैं, हर नेता हर बार किसी जाति के लिए बोल रहा है, यहाँ कोई बात अधिकार की कर रहा हैं, तो कोई बात स्वाभिमान की कर रहा हैं, हक़ीक़त ढूंढे अगर बात की तह में जा कर, हर कोई नेता गंदी राजनीति से अपनी जेबें भर रहा हैं, करते तो हैं राजनीति,कुछ राजनीतिक लोग, जनता को तो आपस में लड़वा कर, शतरंज के मोहरों की तरह इस्तेमाल कर रहा हैं, क्योंकि हर कोई नेता अपनी राजनीति कर रहा है, मैं कर रहा हूँ आपसे एक छोटी सी गुज़ारिश, लड़ना बन्द कर दें सभी मेरें प्यारे साथी,समान हैं सारी जाति, छोड़कर अपनी अपनी ज़िद,बढ़ावा दें मानवता को, छोड़ कर तांता नेताओं का,अग्रसर करें सभ्यता को, पिछड़ रहा है मेरा देश,ओढ़ कर जाति,धर्म का भेष, जिससे फैल रहा हैं दिलों में नफ़रत और द्वेष, देश को आगे बढ़ाना है,शिक्षा का दीपक जलाना हैं, जब फैलेंगी शिक्षा तो बढ़ेगा प्यार, ख़त्म हों जाएँगे एक दिन दुनिया से घातक हथियार....