तुझसे महरूमी

ये मेरें अश्क़ तुझसे महरूमी की,
एक लम्बी..गाथा गाते हैं,

यहाँ शब गुज़रती है रोज़ाना,
कुछ यूँ जागते जागते हमारी,
देखकर ये गम मेरा अक़्सर,
यहाँ तारे भी टूट जाते है,

जब बादल देखकर ये तस्व्वुर हमारा,
ख़ुद को रोक नही पाता,
तब बादल भी मेरी भावनाओं संग,
अपने अश्क़ बहाते है,

हम तो लुटे हुए आशिक़ है ज़नाब,
ख़ुद को कहा आबाद पाते है,
बिछड़कर भी महबूब से अपने,
कहा ख़ुद को हम तन्हा पाते है,

खफ़ा है आज बेशक़ वो हमसे,
मग़र फ़िर भी हमें वो बहुत सताते है,
सँजोये थे जो सपने अपनी आंखों में,
वो हमें रात रात भर जगाते है,

वो भूल जाएं हमें बेशक़,
समझकर कोई पागल दीवाना,
मगर हमें वो बेशकीमती तोहफ़े से,
बहुत ही याद आते हैं...

लेखक :- दिगम्बर रमेश हिन्दुस्तानी🇮🇳

Comments

Popular posts from this blog

मुस्कुराने की सजा

जा रहें है वो

मोहब्बत मे चित्रण