माँ की महत्ता
मैं अपनी "माँ" के लबों पे जो मुस्कान देखता हूँ,
तो यूँ मानो कि खिलखिलाता सारा जहांन देखता हूँ।
आसमां को सिर झुकाते देखा हैं "माँ" के क़दमो में,
मैं हर घर में, एक ऐसा हिंदुस्तान देखता हूँ।
"माँ" का दूध पीने वाले आज, शेर के बच्चे हैं,
मैं उन सबमें उमड़ता एक, पहलवान देखता हूँ।
जो भी अपनी "माँ" की परवरिश से रहा महरूम,
मैं अक़्सर उसकों जीवन में नाक़ाम देखता हूँ।
कामयाबी के शिखर पर अब तक वो ही चढ़े हैं,
जिनके सिर-माथे "माँ" का वरदान देखता हूँ।
सारी दुनिया की दौलत, जो अपनी "माँ' को समझते हैं,
मैं तो फ़क़त उन्ही को, महान देखता हूँ।
हर नारी को पूजता हैं, जो अपनी "माँ" की तरह,
मैं ऐसे हर बशर में, एक मुक़म्मल इंसान देखता हूँ।
एक मंदिर बनाने को जी चाहता हैं मेरा,
मैं जहाँ भी "माँ" के क़दमो के निशान देखता हूँ।
तो यूँ मानो कि खिलखिलाता सारा जहांन देखता हूँ।
आसमां को सिर झुकाते देखा हैं "माँ" के क़दमो में,
मैं हर घर में, एक ऐसा हिंदुस्तान देखता हूँ।
"माँ" का दूध पीने वाले आज, शेर के बच्चे हैं,
मैं उन सबमें उमड़ता एक, पहलवान देखता हूँ।
जो भी अपनी "माँ" की परवरिश से रहा महरूम,
मैं अक़्सर उसकों जीवन में नाक़ाम देखता हूँ।
कामयाबी के शिखर पर अब तक वो ही चढ़े हैं,
जिनके सिर-माथे "माँ" का वरदान देखता हूँ।
सारी दुनिया की दौलत, जो अपनी "माँ' को समझते हैं,
मैं तो फ़क़त उन्ही को, महान देखता हूँ।
हर नारी को पूजता हैं, जो अपनी "माँ" की तरह,
मैं ऐसे हर बशर में, एक मुक़म्मल इंसान देखता हूँ।
एक मंदिर बनाने को जी चाहता हैं मेरा,
मैं जहाँ भी "माँ" के क़दमो के निशान देखता हूँ।
✍️लेखक:- दिगम्बर रमेश हिन्दुस्तानी🇮🇳
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