जाति-धर्मों का जंजाल
जाति, धर्मों ने आज तक इंसानों को मात्र छोटे-बड़े वर्ग समूहों में बाँटा हैं,
तो कभी-कभी आज इनके कारण देश में कोहराम-सा माहौल बन जाता है।
बेशक़ सभी जाति, धर्मों ने अपनी सभ्यता का ख़ूब डंका पीटा हो,
लेकिन हक़ीक़त यह है कि हर धर्म में बहुत-सी कुरीतियों का ख़ाका हैं।
हर धर्म मे अपनी कुछ विशेषताएं है, जो नेक मानसिकता को दर्शाता है,
तो वही सभी धर्मों के कुछ कृत्य, अमानवीय क्रूरता का प्रतीक हो जाता है।
अकसर धर्म को लोग अपने निजी जीवन में इतना महत्व दे देते है,
जैसे जाति, धर्म ही सम्पूर्ण मानव प्राणियों का भाग्य-विधाता है,
धर्मों का काम अकसर मानव को सभ्य बनाने का ही बताया जाता है,
मग़र जाति, धर्म कुछ भी नही है, ये तो मात्र जीवनयापन की शैली को दर्शाता है।
आज विज्ञान का युग हैं, जहाँ असंभव कार्य भी संभव-सा नज़र आता है,
लेकिन भारत के परिवेश में तो आज भी धर्म ही माई-बाप सा नज़र आता है।
हर व्यक्ति भारत में अपनी जाति धर्मों पर पता नहीं क्यों इतना इतराता है,
मुझें तो फ़क्र तब होता है जब कोई व्यक्ति जाति,धर्म से ऊपर उठकर ख़ुद को भारतीय बताता है।
तो कभी-कभी आज इनके कारण देश में कोहराम-सा माहौल बन जाता है।
बेशक़ सभी जाति, धर्मों ने अपनी सभ्यता का ख़ूब डंका पीटा हो,
लेकिन हक़ीक़त यह है कि हर धर्म में बहुत-सी कुरीतियों का ख़ाका हैं।
हर धर्म मे अपनी कुछ विशेषताएं है, जो नेक मानसिकता को दर्शाता है,
तो वही सभी धर्मों के कुछ कृत्य, अमानवीय क्रूरता का प्रतीक हो जाता है।
अकसर धर्म को लोग अपने निजी जीवन में इतना महत्व दे देते है,
जैसे जाति, धर्म ही सम्पूर्ण मानव प्राणियों का भाग्य-विधाता है,
धर्मों का काम अकसर मानव को सभ्य बनाने का ही बताया जाता है,
मग़र जाति, धर्म कुछ भी नही है, ये तो मात्र जीवनयापन की शैली को दर्शाता है।
आज विज्ञान का युग हैं, जहाँ असंभव कार्य भी संभव-सा नज़र आता है,
लेकिन भारत के परिवेश में तो आज भी धर्म ही माई-बाप सा नज़र आता है।
हर व्यक्ति भारत में अपनी जाति धर्मों पर पता नहीं क्यों इतना इतराता है,
मुझें तो फ़क्र तब होता है जब कोई व्यक्ति जाति,धर्म से ऊपर उठकर ख़ुद को भारतीय बताता है।
लेखक :- दिगम्बर रमेश हिंदुस्तानी🇮🇳
Comments
Post a Comment