पर्यावरण बचाओ
पेड़ से, पौधे से, घास से, जिससे भी यारी रक्खो।।
आज पर्यावरण, खतरे में है, यहाँ कुछ तो अपनी शुमारी रक्खो।।
अपनी इच्छा से, मेहनत से, नियत से।।
इसे भी, बचाने कि, जबरदस्त तैयारी रक्खो।।
कल को, साँसे भी, पड़ जाएंगी कम।।
इसलिए तैयारी, आज से ही जारी रक्खो।।
आज ज़हर हैं यहाँ, इन हवाओं में।।
तो सभी को बचाने कि, अपनी भी हकदारी रक्खो।।
आप हुकुम है, सरदार है, आका है, वज़ीर-ए-आला हैं हमारे मुल्क के।।
ये कायनात बचाने की, कुछ तो अपनी भी, जिम्मेदारी रक्खो।।
मैं जानता हूँ, ये सरकार निकम्मी हैं, करेगी कुछ भी नही।।
मग़र चुनाव नजदीक है, वोट माँगने को जुमलों कि लिस्ट जारी रक्खो।।
इन विकसित देशों ने, पर्यावरण को बहुत हानि पहुँचाई हैं, ये इसकी भरपाई ज्यादा करें।।
बस इतनी हमारी बात, UN कि सभाओं में, जोरदार सलीखे, हर बारी रख्खो।।
अगर बस में नहीं आपके, अपने इन कर्तव्यों को निभाना।।
तो आज ही इस्तीफा देकर, ये कुर्सी छोड़कर जाना, मन में जिम्मेदारी रक्खो।।
आज पर्यावरण, खतरे में है, यहाँ कुछ तो अपनी शुमारी रक्खो।।
अपनी इच्छा से, मेहनत से, नियत से।।
इसे भी, बचाने कि, जबरदस्त तैयारी रक्खो।।
कल को, साँसे भी, पड़ जाएंगी कम।।
इसलिए तैयारी, आज से ही जारी रक्खो।।
आज ज़हर हैं यहाँ, इन हवाओं में।।
तो सभी को बचाने कि, अपनी भी हकदारी रक्खो।।
आप हुकुम है, सरदार है, आका है, वज़ीर-ए-आला हैं हमारे मुल्क के।।
ये कायनात बचाने की, कुछ तो अपनी भी, जिम्मेदारी रक्खो।।
मैं जानता हूँ, ये सरकार निकम्मी हैं, करेगी कुछ भी नही।।
मग़र चुनाव नजदीक है, वोट माँगने को जुमलों कि लिस्ट जारी रक्खो।।
इन विकसित देशों ने, पर्यावरण को बहुत हानि पहुँचाई हैं, ये इसकी भरपाई ज्यादा करें।।
बस इतनी हमारी बात, UN कि सभाओं में, जोरदार सलीखे, हर बारी रख्खो।।
अगर बस में नहीं आपके, अपने इन कर्तव्यों को निभाना।।
तो आज ही इस्तीफा देकर, ये कुर्सी छोड़कर जाना, मन में जिम्मेदारी रक्खो।।
-✍ लेखक :- दिगम्बर रमेश हिंदुस्तानी🇮🇳
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