इंसाफ की लड़ाई

इंसाफ की लड़ाई अक्सर बगावत मांगती है,
चीज पुरानी हो तो क्या, हर चीज हिफाजत मांगती है।

लड़ने वाला तो बस जीत का तलबगार होता है,
आजकल तो हक की लड़ाई भी, एक जमानत मांगती है।

सौंपती आई है जो जनता, अपनी तिजोरी की चाबियां तुमको,
आज मालिक के हक से, वो अपनी अमानत मांगती है।

किसको मतलब है देश से,  और कौन मतलबी है !
अब भी ये जनता भोली, बिल्कुल नहीं पहचानती  है।

बोलकर मीठा सामने, जो हमारी पीठ में खंजर उतारते हैं,
ऐसे लोगों को भी ये आवाम अपना मानती हैं।

करके भरोसा हर एक पर अब तलक सिर्फ धोखा‌ ही खाया है,
मगर आजकाल मेरी नजरें, हर एक की नियत पहचानती है।

~दिगंबर रमेश हिंदुस्तानी🇮🇳

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